"सब तंत्रों से भी बढ़कर है "जनतंत्र " यह सबित हो गया !!" "सब तंत्रों से भी बढ़कर है "जनतंत्र " यह सबित हो गया !!"
ये कविता हर इंसान के लिए है, महज़ लड़कियों के लिए नहीं, हर उस इंसान के लिए, जो सांस ले रहा है, जी रहा ... ये कविता हर इंसान के लिए है, महज़ लड़कियों के लिए नहीं, हर उस इंसान के लिए, जो सां...
वापसी पर वापसी पर
रूपांतरित कर देना का सब कुछ खुद सा सब कुछ स्वीकार करते हुये। रूपांतरित कर देना का सब कुछ खुद सा सब कुछ स्वीकार करते हुये।
कहने को दो-दो घर मेरे, फिर भी मैं पराई हूँ ! कहने को दो-दो घर मेरे, फिर भी मैं पराई हूँ !
कुछ नहीं, बहुत कुछ अनोखा है तुझमें। कुछ नहीं, बहुत कुछ अनोखा है तुझमें।